परिवार अब कहाँ, परिवार तो कब के मर गए।
आज जो है, वह उसका केवल
टुकड़ा भर रह गए।
पहले होता था दादा का,
बेटों पोतों सहित,भरा पूरा परिवार,
एक ही छत के नीचे।
एक ही चूल्हे पर,
पलता था उनके मध्य,
अगाध स्नेह और प्यार।
*अब तो रिश्तों के आईने,*
*तड़क कर हो गए हैं कच्चे,*
*केवल मैं और मेरे बच्चे।*
*माँ बाप भी नहीं रहे*
*परिवार का हिस्सा,*
*तो समझिये खत्म ही हो गया किस्सा।*