मैं ऊपरवाला बोल रहा हूँ,
जिसने ये पूरी दुनिया बनाई वो ऊपरवाला.
जिसने ये पूरी दुनिया बनाई वो ऊपरवाला.
तंग आ चुका हूँ मैं तुम लोगों से,
गाड़ी तुम तेज़ चलाओ और धक्का लग जाये तो, "ऊपरवाले........".
पढाई तुम न करो और फेल हो जाओ तो, "ऊपरवाले.........".
ऐसा लगता है इस दुनिया में होने वाले हर गलत काम का जिम्मेदार मैं हूँ।
आजकल तुम लोगों ने एक नया फैशन बना लिया है, जो काम तुम लोग नहीं कर सकते, उसे करने में मुझे भी असमर्थ बता देते हो!
ऊपरवाला भी भ्रष्टाचार नहीं मिटा सकता,
ऊपरवाला भी महंगाई नहीं रोक सकता,
ऊपरवाला भी बलात्कार नहीं रोक सकता.......
ये सब क्या है?
भ्रष्टाचार किसने बनाया?
मैंने?
किससे रिश्वत लेते देखा है तुमने मुझे?
मैं तो हवा, पानी, धूप, आदि सबके लिए बराबर देता हूँ,
कभी देखा है कि ठण्ड के दिनों में अम्बानी के घर के ऊपर मैं तेज़ धूप दे रहा हूँ, या गर्मी में सिर्फ उसके घर बारिश हो रही है ?
उल्टा तुम मेरे पास आते हो रिश्वत की पेशकश लेकर,
कभी लड्डू,
कभी पेड़े,
कभी चादर.
और हाँ....
आइन्दा से मुझे लड्डू की पेशकश की तो तुम्हारी खैर नहीं,
मेरे नाम पे पूरा डब्बा खरीदते हो,
एक टुकड़ा मुझपर फेंक कर बाकी खुद ही खा जाते हो.
ये महंगाई किसने बनाई?
मैंने?
मैंने सिर्फ ज़मीन बनाई,
उसे "प्लाट" बनाकर बेचा किसने?
मैंने पानी बनाया,
उसे बोतलों में भरकर बेचा किसने?
मैंने जानवर बनाये,
उन्हें मवेशी कहकर बेचा किसने?
मैंने पेड़ बनाये,
उन्हें लकड़ी कहकर बेचा किसने?
मैंने आज तक तुम्हें कोई वस्तु बेची?
किसी वस्तु का पैसा लिया?
सब चीज़ों में कसूर मेरा निकालते हो।
अभी भी समय है
सुधर जाओ
वरना
फिर मत कहना
ये प्रलय क्यूँ आई।
कृपया प्रकृति से खिलवाड़ न करें।
No comments:
Post a Comment