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Thursday, July 30, 2015

अब तो खुश व संतुष्ट हो जाओ...




राजा का जन्मदिन था । सुबह जब वह घूमने निकला, तो उसने तय किया कि वह रास्ते में मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा. उसे एक भिखारी मिला.


भिखारी ने राजा सें भीख मांगी, तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया. सिक्का भिखारी के हाथ सें छूट कर नाली में जा गिरा. भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा.

राजा ने उसे बुला कर दूसरा तांबे का सिक्का दिया. भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढ़ने लगा.

राजा को लगा की भिखारी बहुत गरीब है, उसने भिखारी को फिर बुलाया और चांदी का एक सिक्का दिया.

भिखारी राजा की जय जयकार करता चांदी का सिक्का रख लिया और फिर नाली में तांबे बाला सिक्का ढूंढ़ने लगा.

राजा ने फिर बुलाया और अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया. भिखारी खुशी सें झूम उठा और वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा.

राजा को बहुत खराब लगा. सिक्का दिया.

भिखारी खुशी सें झूम उठा और वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा. राजा को बहुत खराब लगा.
उसे खुद सें तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं संतुष्ट करना है.


उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हुं, अब तो खुश व संतुष्ट हो जाओ...


भिखारी बोला, मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूंगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का भी मुझे मिल जायेगा.


हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है.


हमें विश्र्वनियंता ने मानव रूपी अनमोल खजाना दिया है और हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे है... इस अनमोल मानव जीवनका हम अगर सही इस्तेमाल करें तो हमारा जीवन धन्य हो जाये.

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