एक कुम्हार माटी से चिलम बनाने जा रहा था..। उसने चिलम का आकर दिया..। थोड़ी देर में उसने चिलम को बिगाड़ दिया...l
कुम्हार ने कहा कि-: अरी माटी, पहले मैं चिलम बनाने की सोच रहा था,
किन्तु मेरी मति बदली और अब मैं सुराही या फिर घड़ा बनाऊंगा,,,।
ये सुनकर माटी बोली-: रे कुम्हार, तेरी तो मति बदली, मेरी तो जिंदगी ही बदल गयी...l चिलम बनती तो स्वयं भी जलती और दूसरों को भी जलाती,,, अब सुराही बनूँगी तो स्वयं भी शीतल रहूँगी ...और दूसरों को भी शीतल रखूंगी...l
"यदि जीवन में हम सभी सही फैसला लें... तो हम स्वयं भी खुश रहेंगे.., एवं दूसरों को भी खुशियाँ दे
सकेंगे।"
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